नीतू शर्मा @ किसान रबी फसल की कटाई के बाद पुन: बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इसे गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व का खास महत्व है। गुड़ी ध्वज अर्थात झंडे को कहा जाता है और प्रतिपदा तिथि को पड़वा। मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। वसंत और ग्रीष्म ऋतु को जोड़ता चैत्र माह वैसे भी कोंपलों को फूटने का समय है। ऐसे में सृष्टि का प्रारंभ वसंत से ही हो सकता है। सृष्टि के निर्माण का दिन कहते है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य शुरू किया था। यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं। इस दिन नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है। इसे हिंदू कैलेंडर का पहला दिन भी कहते है। गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक-ऐतिहासिक कथा बाली वध दक्षिण भारत का क्षेत्र रामायण काल में बाली का शासन क्षेत्र हुआ करता था। जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण माता सीता का हरण करके ले गये हैं और उन्हें वापस लाने के लिए उन्हें रावण की सेना से युद्ध करना होगा। युद्ध करने के लिए उन्हें सेना की आवश्यकता होगी। दक्षिण भारत में आने के बाद उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने बाली के कुशासन से उन्हें अवगत करवाते हुए अपनी असमर्थता जाहिर की। तब भगवान श्री राम ने बाली का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उनसे मुक्त करवाया। मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ही वो दिन था। इसी कारण इस दिन गुड़ी अर्थात विजय पताका फहराई जाती है। एक और प्राचीन कथा शालिवाहन के साथ भी जुड़ी है कि उन्होंने मिट्टी की सेना बनाकर उनमें प्राण फूंक दिये और दुश्मनों को पराजित किया। इसी दिन शालिवाहन शक संवत का आरंभ भी माना जाता है। हिंदू पंचाग की रचना का काल कहते हैं कि प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने अपने अनुसंधान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना करते हुए भारतीय पंचांग की रचना की। इस दिन लोग अपने घरों को आम के पत्तों की बंदनवार से सजाते हैं। खासकर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर बहुत उल्लास होता है। आम के पत्तों की यह बंदनवार लोगों में खुशहाल जीवन की एक उम्मीद जगाती है। अच्छी फसल होने व घर में समृद्धि आने की उम्मीद भी लोगों को होती हैं। गुड़ी पड़वा की गिनती वर्ष के तीन मुंहतारे में होती है। इसी दिन चूंकि नवरात्र भी आरंभ होते हैं इसलिए इस पर्व का उल्लास पूरे देश में अलग-अलग रूपों में देखने को मिलता है जो कि दुर्गा पूजा के साथ रामनवमी के दिन समाप्त होता है। गुड़ी पड़वा की परंपरा गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और तोरण द्वार बनाकर सजाते हैं। घर के आगे एक गुड़ी मतलब झंडा रखा जाता है। इसके अलावा एक बर्तन पर स्वास्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर उसे रखा जाता है। इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्त्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करने की भी परंपरा है। कैसे 1. प्रात:काल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है। 2. इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए। 3. सूर्योदय के तुरंत बाद गुड़ी की पूजा का विधान है। 4. चटख रंगों से रंगोली बनाने के साथ ही फूलों से घर को सजाया जाता है। 5. इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परंपरा है। 6. गुड़ी पड़वा पर श्रीखंड, पूरन पोली, खीर आदि बनाए जाते हैं। 7. शाम के समय लोग लेजिम नामक पारंपरिक नृत्य भी करते हैं। विभिन्न स्थानों में गुड़ी पड़वा 1. गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाते हैं। 2. कर्नाटक में यह पर्व युगादी नाम से मनाया जाता है। 3. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगादी नाम से जाना जाता है। 4. कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं। 5. मणिपुर में इस दिन को सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा के नाम से जाना जाता है। 6. इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है। क्या है गुड़ी महाराष्ट्र में गुड़ी लगाया जाता है। इसके लिए एक बांस लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का कलश उलटा कर रखा जाता है और केसरिया रंग या रेशम के कपड़े से इसे सजाया जाता है। इसके बाद गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम की डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है। गुड़ी को किसी ऊंचे स्थान पर लगाया जाता है, ताकि उसे दूर से भी देखा जा सके। मान्यता है कि सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने के बाद लोगों ने घरों पर गुड़ी लगाकर खुशी का इजहार किया था। छत्रपति शिवाजी की विजय की याद में भी गुड़ी लगाया जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है। कहीं-कहीं भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस आने की खुशी में भी गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है। किसान रबी फसल की कटाई के बाद पुन: बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त काफी शुभ माने जाते हैं, इनमें गुड़ी पड़वा भी एक है। इसके अलावा अक्षय तृतीया और दशहरा को पूर्ण और दीवाली को अर्ध मुहूर्त माना जाता है।
गुड़ी पड़वा है सृष्टि के सृजन का शुभ दिन।
