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सिनेमा के प्राण की पुण्यतिथि आज

एक दौर था जब फिल्म के हीरो से ज्यादा फिल्म के विलेन की चर्चा होती थी। एक एेसी शख्सियत जिसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है। भले ही वह परदे पर विलेन थे लेकिन असल जिंदगी में हीरो से भी बढ़कर। हम बात कर रहे हैं प्राण साहब की। आज के ही दिन प्राण साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। फिल्मफेयर, दादा साहब फाल्के पुरस्कार समेत कई अवार्ड से सम्मानित प्राण साहब का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था। फोटोग्राफी का शौक रखने वाले प्राण साहब पहले फोटोग्राफर बनना चाहते थे। उन्होंने दिल्ली स्थित ए दास एंड कंपनी में इंटर्नशिप भी की थी। आपको जानकर हैरानी होगी की प्राण साहब करियर के शुरूआती दौर में रामलीला किया करते थे, जिसमें वह माता सीता की भूमिका निभाया करते थे। इसके बाद प्राण साहब ने पंजाबी फिल्मों में फिल्मी करियर शुरू किया। उनकी पहली फिल्म यमला जट (1940) थी जिसमें उन्होंने विलेनी की भूमिका निभायी थी। ये फिल्म बड़ी हिट रही। प्राण भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद लाहौर छोड़कर मुंबई आ गये। इस बीच प्राण ने लगभग 22 फिल्मों में अभिनय किया और उनकी फिल्में सफल भी हुई लेकिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि फिल्म के हीरो का बजाय फिल्म के खलनायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। वर्ष 1948 में उन्हें बांबे टॉकीज की निर्मित फिल्म 'जिद्दी' में बतौर खलनायक काम करने का मौका मिला। फिल्म की सफलता के बाद प्राण ने यह निश्चय किया कि वह खलनायकी को ही करियर का आधार बनायेगें और इसके बाद प्राण ने लगभग चार दशक तक खलनायकी की लंबी पारी खेली और दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। यह भी एक किस्सा है कि अमिताभ बच्चन को बिग बी बनाने में भी प्राण का सबसे बड़ा हाथ है। उन्होंने ही प्रकाश मेहरा को कहकर बिग बी को फिल्म 'जंजीर' में मुख्य किरदार निभाने का मौका दिलाया और इस फिल्म में शेर खान का रोल भी अदा किया। यह कहना गलत न होगा कि प्राण साहब ने ही इंडस्ट्री में बिग बी को एंग्री हीरो के तौर पर खड़ा किया। प्राण साहब यारों के यार कहे जाते थे। अभिनेता और निर्देशक राज कपूर की फिल्म 'बॉबी' में काम करने के लिए प्राण ने महज एक रुपये की फीस ही ली थी, क्योंकि उस दौरान राज कपूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। बहुत कम लोगों को पता है कि प्राण को क्रिकेट का कितना शौक था, यहां तक कि वो मुंबई में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के सदस्य बन गए थे। ब्रेबोर्न स्टेडियम में होने वाले हर बड़े मैच को प्राण देखने जाया करते थे। सीसीआई के बाहर टिकट लेने वालों में वो सबसे आगे होते थे, सुबह पांच बजे से ही पहुंच जाया करते थे। शायद इसी शौक के चलते उन्होंने ना केवल एक बार युवा खिलाड़ी कपिल देव की तब मदद करने का ऐलान किया, जब सरकार ने भी हाथ खींच लिए थे। सिनेमा का यह प्राण 12 जुलाई 2013 को अपनी फिल्मों में निभाए अपने किरदारों और ढेर सारी यादें छोड़ कर इस दुनिया से चला गया। प्राण के द्वारा निभाए गए खलनायकी के किरदारों का असर ऐसा रहा कि उनके फिल्मों में उभरने के बाद इस देश में पैदा हुए किसी बच्चे का नाम 'प्राण' नहीं रखा गया। यह कद और करिश्मा रहा है प्राण साहब का।

मालवांचल

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