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क्यों मनाई जाती है गुरुपूर्णिमा।

( नवभारत टाइम्स ) गुरु के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। इस बार यह गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई यानी शुक्रवार को है। भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा को क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा? महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। बहुत से मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधी की पूजा करते हैं। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने दिवंगत गुरु अथवा ब्रह्मलीन संतों के चिता या उनकी पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजन करते हैं। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। बच्चे को जन्म भले ही मां-बाप देते हों लेकिन उसको जीवन का अर्थ और इस संसार के बारे में समझाने का कार्य गुरु करता है। गुरु को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि जिस प्रकार से वह जीव का सर्जन करते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु शिष्य का सर्जन करते हैं। हमारी आत्मा को ईश्वर रूपी सत्य का साक्षात्कार करने के लिए बेचैन है और ये साक्षात्कार वर्तमान शरीरधारी पूर्ण गुरु के मिले बिना संभव नहीं है, इसीलिए हर जन्म में वो गुरु की तलाश करती है। वैदिक ग्रंथों में शिव को माना जाता है पहला गुरु पुराणों के अनुसार, भगवान शिव सबसे पहले गुरु माने जाते हैं। शनि और परशुराम इनके दो शिष्य हैं। शिवजी ने ही सबसे पहले धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव और आदिगुरू कहा जाता है। शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है। आदिगुरू शिव ने शनि और परशुराम के साथ 7 लोगों को दिया। ये ही आगे चलकर सात ह्मर्षि कहलाए और इन्होंने आगे चलकर शिव के ज्ञान को चारों तरफ फैलाया। गुरु पूर्णिमा पूजा विधि शास्त्रों में गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजा की विधि इस प्रकार बताई गई है कि सुबह स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु, शिवजी की पूजा करने बाद गुरु बृहस्पति, महर्षि वेदव्यास की पूजा करें इसके बाद अपने गुरु की पूजा करें। गुरु को फूलों की माला पहनाएं और मिठाई, नए वस्त्र एवं धन देकर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करें। गुरु पूजन मुहूर्त गुरु पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण लग रहा है। इस ग्रहण का सूतक दोपहर बाद 2 बजे से लग रहा है। इसलिए सूतक काल से पहले गुरु कु पूजा कर लेना शुभ रहेगा। जो लोग गुरु मंत्र लेना चाहते हैं उनके लिए ग्रहण काल का समय उत्तम रहेगा।  

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