Narad jayanti 2020: नारदजी को लेकर शास्त्रों में अनेक कथाएं प्रचलित है। इन कथाओं में नारद मुनि के जीवन चरित्र की विभिन्न रोचक जानकारियों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों में नारदजी के कई स्वरूपों का वर्णन किया गया है। लेकिन ज्यादातर जगहों पर उनका मुख्य काम एक संदेशवाहक का रहा है। अपने खट्ठे-मीठे संदेशों के जरिए कभी नारद ने देवी-देवताओं का दिल जीता है तो कभी विवादों को भी जन्म दिया है। आइए जानते हैं नारद मुनि के जीवन से जुड़ी कुछ खास और दिलचस्प बातें। पिता ब्रह्माजी ने दिया नारद को श्राप नारद मुनि ज्यादातर समय भ्रमण करते रहे। कभी वह देवताओं के यहां तो कभी असुरों के यहां भी वो संदेश लेकर गए हैं। उनकी प्रबंधन क्षमता बेजोड़ थी और इसी वजह से वह देव-दानव दोनों के चहेते और लोकप्रिय भी थे, लेकिन इसके बावजूद वह आजीवन अविवाहित रहे। उनके अविवाहित रहने के पीछे उनके पिता ब्रह्मा का दिया हुआ श्राप था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने नारदजी को सृष्टि के कामकाज में हाथ बंटाने और विवाह करने का आदेश दिया था, लेकिन उस समय नारदजी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से इंकार कर दिया था। ब्रह्माजी मे एक पिता के नाते उनको समझाने की लाख कोशिश भी की, लेकिन देवर्षि नारद अपनी जिद पर अड़े रहे। यह भी कहा जाता है कि वह विष्णु भक्ति में लीन रहे। नारदजी के इस हठ और अवज्ञा से नाराज होकर ब्रह्माजी ने उनको जीवनभर अविवाहित रहने का श्राप दे दिया। राजा दक्ष ने दिया था नारदजी को श्राप नारदजी की एक कथा राजा दक्ष से जुड़ी हुई है। राजा दक्ष को अपनी पत्नी आसक्ति से दस हजार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। लेकिन दुर्भाग्यवश इनमें से किसी ने भी राजपाठ नहीं संभाला था, क्योंकि इन सभी राजकुमारों को देवर्षि नारद ने मोक्ष के मार्ग पर चलना सीखा दिया था। इसके बाद राजा दक्ष ने पंचजनी से विवाह किया और उन्होंने एक हजार पुत्रों को जन्म दिया। नारदजी ने इन सभी राजकुमारों को भी मोक्ष की शिक्षा दी और सांसरिक मोह-माया के बंधनों से दूर रहने का पाठ पढ़ाया। नारदजी के इस कृत्य से राजा दक्ष को बहुत क्रोध आया और उन्होंने महर्षि नारद को श्राप दे दिया कि वह कभी भी एक स्थान पर ज्यादा समय तक टीक नहीं सकेंगे और हमेशा ब्रह्माण्ड में भटकते रहेंगे। महर्षि व्यास, महर्षि वाल्मीकि और महाज्ञानी शुकदेव देवर्षि नारद के शिष्य थे। देवताओं के ऋषि होने की वजह से उनको देवर्षि कहा जाता है। मैत्रायणी संहिता में नारदजी को आचार्य कहा गया है। कुछ शास्त्रों में नारदजी का वर्णन बृहस्पति के शिष्य के रूप में भी मिलता है।
ब्रह्माजी के मानस पुत्र नारदजी को इसलिए मिले थे इतने श्राप
